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अनुसंधान कार्य हमेशा समाजोपयोगी हाें, जानिए

Byadministrator

Jun 17, 2024

 

 

पतंजलि विश्वविद्यालय के सभागार में तीन शोधार्थियों ने अपने पी-एच.डी. शोध कार्य पूर्ण कर डॉक्टरेट उपाधि की योग्यता प्राप्त की। वि.वि. प्राच्य विद्या संकाय की अध्यक्षा प्रो- साध्वी देवप्रिया के निर्देशन में स्वामी बजरंगदेव ने ‘सांख्य-योग एवं बौद्ध दर्शन में तुलनात्मक अध्ययन’ विषय पर अपना शोध कार्य पूर्ण किया।

इसमें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के प्रो. ब्रजभूषण ओझा बाह्य परीक्षक के रूप में उपस्थित रहे। साथ ही, मनोविज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अभिषेक कुमार भारद्वाज के निर्देशन में सुश्री नेहा ने ‘स्थूलकाय प्रतिभागियों में मानव देहमिति एवं मनोवैज्ञानिक मापनों पर परम्परागत वेलनेस चिकित्सा का प्रभाव’ तथा सुश्री प्रियांशी कौशिक ने ‘वृद्धावस्था में शारीरिक दशा संतुलन, नींद की गुणवत्ता एवं मनोवैज्ञानिक मापदण्डों पर योग अभ्यास की प्रभावशीलता’ विषय पर अपना शोध कार्य पूर्ण किया जिसमें विशेषज्ञ परीक्षक के रूप में एच.एन.बी. गढ़वाल केन्द्रीय वि.वि. की सह-आचार्या डॉ. अनुजा रावत एवं महाराजा अग्रसेन हिमालयन गढ़वाल विश्वविद्यालय के सह-आचार्य डॉ. अरूण कुमार सिंह की उपस्थिति रही।

विषय विशेषज्ञ एवं बाह्य परीक्षकों की उपस्थिति में शोधार्थियों की मुख्य मौखिकी परीक्षा सम्पन्न हुई जिसके उपरान्त परीक्षकों द्वारा शोधार्थियों को पी-एच.डी. उपाधि प्रदान किये जाने की संस्तुति प्रदान की गई।

इस अवसर पर वि.वि. के प्रति-कुलपति प्रो. महावीर अग्रवाल ने कहा कि शोध कार्य हमेशा उच्चस्तरीय हों तथा समाज के लिए उपयोगी भी हों। संकायाध्यक्ष (शिक्षण एवं शोध) प्रो. वी.के. कटियार ने शोधार्थियों का मार्गदर्शन करते हुए बताया कि शोध कार्य में उपयुक्त शोध-प्रणाली एवं शोध के नैतिक मापदण्डों का शत-प्रतिशत पालन करना हमारा कर्त्तव्य होना चाहिए। मुख्य मौखिकी परीक्षा के दौरान प्रो. विजय पाल सिंह प्रचेता, प्रो. मनोहर लाल आर्य, डॉ. स्वामी परमार्थदेव, स्वामी आर्षदेव, श्री राकेश ‘भारत’, डॉ. बिपिन कुमार दूबे, डॉ. संदीप सिंह, श्री गिरिजेश मिश्र सहित वि.वि. के आचार्य एवं विभिन्न संकायों के शोधार्थीगण उपस्थित रहे।

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